केसरिया और भगवा में क्या अंतर है?
मुझसे यह पूछा गया है कि केसरिया और भगवा में क्या अंतर है?
यह सही है की केसरिया और भगवा दोनों एक ही जैसे रंग है परंतु उनकी मूलभूत अंतर्निहित विशेषताओं में बहुत भारी अंतर है।
केसरिया प्राणोत्सर्ग का प्रतीक है,क्षत्रियत्व का प्रतीक है,शौर्य और संघर्ष का प्रतीक है, साहस का प्रतीक है और धर्म की रक्षा के लिए कर्तव्य पथ पर मिट जाने की अदम्य आकांक्षा का प्रतीक है।
भगवा भारत की त्याग प्रधान संस्कृति का प्रतीक है, त्याग और मोक्ष की आकांक्षा का प्रतीक है,संसार को मिथ्या समझ कर उसके प्रति उदासीनता और परम अध्यात्म का प्रतीक है।
परन्तु जब हम भगवा और केसरिया की तुलना करते हैं तो हमें उनके परिप्रेक्ष्य और सन्दर्भों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
जब भी हम संस्कृति,अध्यात्म,त्याग और श्रेष्ठता के साथ केसरिया को राजनीति,स्वार्थ और निजी अथवा सांगठनिक महत्वाकांक्षाओं माध्यम से जब भी जोड़ने का प्रयास करेंगे एक पाखंड और पलायनवादिता के अतिरिक्त कुछ नहीं हो पाएगा।
केसरिया का अर्थ है देश, धर्म,आत्मसम्मान,नारी और निर्बल की रक्षार्थ निडर भाव से प्राण त्यागने का व्रत धारण कर लेना।
और यही व्रत धारण कर राजपुतों के पुरखों ने आज का हिन्दू धर्म जिंदा रखा है।
इसका विपरीत भी उतना ही सही हैं अगर भगवा रंग को हम राष्ट्रवाद राष्ट्रीय राजनीति, धर्म की रक्षा और निजी और सांगठनिक महत्वाकांक्षाओं के साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे तो भी यह सिर्फ पाखंड ही होगा।
यह पाखण्ड पूंजीवादी विचारधारा की पोषक आज के कथित हिंदू धर्म के झंडाबरदार संगठन हमेशा से इस्तेमाल करते आ रहे है।
और इन्होंने ही हिंदू धर्म,इतिहास,और भारत वर्ष की महान आध्यात्मिक परम्परा को बाजारू,सस्ता और ओछा करके रख दिया है।
भारत में यही विडंबना पिछले 70 वर्षों से चली आ रही है सर्वप्रथम कांग्रेस ने भारतीय धर्म और संस्कृति अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए भगवा और केसरिया दोनों को निषेध जैसे शब्दों के रूप में स्थापित करने का षड्यंत्र किया है।
और भारत में आज़ादी के बाद जिस पूंजीवादी राज्य की स्थापना हुई उसमें हिंदू धर्म राजपूती त्याग और सनातन संस्कृति को निषेध की तरह घोषित कर दिया गया।
कांग्रेसमें शायद यह असुरक्षा बोध भी था की राजपूत जाति राजाओं के रूप में और पूर्व शासक समुदाय के रूप में एक राजनीतिक चुनौती के रूप में कांग्रेस के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है।
इसलिए कांग्रेस ने केसरिया का भी विरोध किया और भगवा का भी विरोध किया। परंतु यह विरोध केवल इसलिए की पूंजीवादी वणिक समुदाय यह चाहता था कि भारत का बहुमत जाति और धर्म के आधार पर हमेशा आपस में लड़ता रहे और अल्पसंख्यक मुसलमान अपने असुरक्षा बोध के चलते कांग्रेस से मज़बूरी में सदैव जुड़ा रहे।
परंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी ने भी सत्ता में आने के अपने प्रयासों में सदैव ही इस भगवा रंग को अपने वैश्यालयों और लंपट दुष्कर्मों को ढकने में इस्तेमाल किया। वास्तव में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कांग्रेस के विरोधी मगर पूंजीवादी विचारधारा वाला महत्वाकांक्षी और सत्ता लोलुप संघठन ही थे जो कांग्रेस द्वारा सत्ता से वंचित कर दिये गए थे।
बस बीजेपी और संघ ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कांग्रेस विरोधियों को अपने पक्ष में लेने के प्रयास किए जिसके अंतर्गत राजपूत कांग्रेस के विरोध के चलते हुए बीजेपी से जुड़ गए थे बस!
चतुर और धूर्त बीजेपी ने राजपूतों को कभी भी आगे आने और अभिमान करने लायक ही नहीं छोड़ा। उसने शातिर तरीके से केसरिया को भगवा में बदल दिया और इस तरह से उसने एक तीर से दो शिकार किए।
एक तरफ बीजेपी और संघ ने भगवा और हिंदू संगठन को महत्व दे कर एक बड़ा जनाधार अपने पक्ष में खड़ा करने का आधार बना दिया जिसके माध्यम से आजादी के बाद सत्ता से वंचित अंग्रेज समर्थक और गद्दार वणिक वर्ग सत्ता में आने की अपनी सम्भावनाएं बना सके ।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस विरोधी कार्यकर्ताओं की फौज के रूप में राजपूतों को भगवा रंग को केसरिया के समान मानकर उन्हें अंधेरे में रखा गया और धीरे धीरे हिन्दू धर्म,संस्कृति और इतिहास को ख़त्म करते गए।
यह वणिकों की फौज जो केवल और केवल व्यापार और मुनाफे के अलावा किसी नैतिकता को नहीं मानती थी और उनका स्वयं का इतिहास केवल और केवल गद्दारी से भरा हुआ था और जिन्होंने पिछले हजारों वर्षों से ब्याज और मुनाफाखोरी लूट और दगाबाजी से उत्तर से दक्षिण और पूर्व में पूर्व से पश्चिम तक हर आम और हर वर्ग के भारतीय का सिर्फ आर्थिक और सामाजिक शोषण किया था, अब चाहती थी कि अब उनका और भारत एक नया इतिहास बने जो कि पूरी तरह से पौराणिक आख्यानों पर आधारित और काल्पनिक हो परंतु उसमें लंपट बनियों के बारे में कुछ भी बुरा न लिखा गया हो |
इसी षड्यंत्र के तहत इन्हीं वणिकों ने मुस्लिम इतिहास और वामपंथी इतिहास के माध्यम से पहले तो हिंदू संस्कृति का इतिहास विकृत करने दिया और बाद में षड्यंत्र पूर्वक काल्पनिक पौराणिक इतिहास को नए इतिहास के रूप में स्थापित करने में जुट गए। पौराणिक आख्यानों को वैज्ञानिक साबित करने के शुद्र प्रयासों को जो रंग दिया गया था वह लम्पटता की सड़ांध में बदबू देने वाला भगवा रंग ही था।
वर्तमान भगवा रंग की यही कटु सच्चाई है।यह केसरिया गौरव और भारत के वास्तविक इतिहास दोनों को खत्म करके सफेद झूठ के कपड़े को स्वार्थ,शोषण और आर्थिक असमानता की पीली गंदगी से रंग कर गढ़ा गया है। इसका रंग तो केसरिया नजर आता है पर उसमें शाका और जौहर के जलते चंदन और कोपरों की खुशबू नहीं आती है।
इसमें आती है तो सिर्फ असमानता और शोषण की बदबू !!
इसलिये सच्चे क्षत्रिय इस भगवे के निकट ज्यादा देर तक नहीं रह पाएंगे।
आजादी के बाद लिखे गए भारत के वामपंथी विचारधारा के इतिहास, मुस्लिम विचारधारा के इतिहास और संघ की विचारधारा के इतिहास में यह एक बात कटु मगर एक समान रूप से मौजूद है कि ये सभी हिंदू धर्म के वास्तविक इतिहास को,वास्तविक संस्कृति को,वास्तविक अध्यात्म को और वास्तविक महानता को सिरे से ही अस्वीकार करते हैं।
और बिचारे राजपूत भगवा को अपनी संस्कृति और गौरव का विषय समझकर बीजेपी के साथ 70 सालों तक जुड़े रहे हैं।
और मौका आने पर बीजेपी ने उनको यह स्पष्ट कर दिया कि वे सिर्फ भगवा और पौराणिक आख्यानों पर निर्मित काल्पनिक हिंदू धर्म के ही समर्थक है।
केसरिया हिंदू धर्म जिसकी रक्षा के लिए 1000 वर्षों तक अपने प्राणों की बलि देने वाला राजपूतों के वंशज अपने आपको आत्मा से जुड़ा मानते है वह इन बनियों के लिए सिर्फ घृणा का विषय है क्योंकि हिदुओं के संघर्ष और जगत सेठों की गद्धारियाँ इतिहास में एक साथ नजर आती हैं
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