Tuesday, 13 November 2018

भिवानी हरियाणा का इतिहास

== भिवानी हरियाणा ==

जिले को 22 दिसम्बर 1972 को हिसार से अलग कर दिया गया था। इस में छ: तहसील हैं - भिवानी, बवानी खेड़ा, तोशाम, चरखी दादरी, लोहारू और सिवानी। वर्त्तमान में चरखी दादरी को नया जिला बना दिया गया है भिवानी के उत्तर में हिसार, पूर्व में रोहतक, दक्षिण में महेंद्रगढ़, दक्षिण पूर्व में रेवाड़ी तथा पशिम और दक्षिण पश्चिम में राजस्थान है। ये हरियाणा के सबसे नीचे जल स्तर के जिलों में आता है। खासकर लोहारू और चरखी दादरी की ओर पानी की अत्यधिक कमी है।

== इतिहास ==

आईने-अकबरी में भिवानी का ज़िक्र मिलता
है। कहा जाता है की ये नगर राजपूत राजा
नीम ने अपनी रानी भानी के नाम पर
बसाया था। कालांतर में इसका नाम
स्थानीय बोली के अनुरूप बिगड़ कर भ्याणी
और बाद में भिवानी पड़ गया। परन्तु कुछ
लोगों का मानना है की यहाँ हिन्दू धर्म की
देवी माता भवानी ने अपने चरण रखे थे और
उससे इसका नाम बिगड़ कर भिवानी पड़ा।
मुग़ल काल में यह एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक
नगर था और आज भी हरियाणा और
राजस्थान के बीच उद्योग का केंद्र है।

== लोग ==

भिवानी की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू धर्म का अनुसरण करती है। इनमें से भी अधिकतर राजपूत सम्प्रदाय के लोग है। तत्पश्चात बनिए, ब्रह्मण व जाट आदि जातियां भी भिवानी में प्रमुख है। मुस्लिम लोगों की जनसंख्या तुलनात्मक रूप से कम है परन्तु नगण्य नहीं है। विविधता होने के बावजूद यहाँ कभी धर्म अथवा जाती को लेकर कोई ख़ास मतभेद नहीं हुआ है। अपितु लोग समभाव एवं भाईचारे का प्रतीक चिह्न हैं। भिवानी की कार्यालयी भाषा हिंदी है तथा बोली हरियाणवी है। कुछ लोग यहाँ शुद्ध हिंदी भी बोलते हैं और कहीं कहीं उर्दू का भी प्रभाव देखने को मिलता है। भिवानी में एक बड़ी जनसंख्या में बिहार तथा उत्तर प्रदेश से लोगों का आप्रवासन होता है जो रोज़गार के लिए यहाँ आते हैं। भिवानी का सामान्य पहनावा पुरुषों में कुर्ता-पजामा, धोती, पैंट-शर्ट, तथा सर पर खंडूवा है। स्त्रियाँ कमीज़, दामन, सूट, सलवार, तथा कुर्ती पहनती हैं। विवाह के अवसर पर सामान्यतः बड़े बुजुर्ग पारंपरिक पहनावे में आते हैं। समय के साथ भिवानी में भी हरियाणा के अन्यत्र स्थानों की भांति पाश्चात्य पहनावा प्रचलित होता जा रहा है। जैसे पुरुषों में जींस आदि तथा स्त्रियों में टॉप आदि।

भिवानी के लोग अत्यधिक धार्मिक होते हैं तथा कुछ हद तक कट्टरपंथी हिंदुत्व का अनुसरण करते हैं। अधिकांश राजपूत तथा जाट घरों में आज भी मांसाहार को त्यज समझा जाता है तथा सुध्ह एवं सात्विक जीवन बिताया जाता है।

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