Thursday, 8 November 2018

दुख्ख होता हैं जब देखता हुँ राजपूतानियों को बिना चुन्नी घुंघट के -

#ज्यादा_से_ज्यादा_शेयर_कर_दो_हुकुम
#राजपूत_जरूर_पढ़ें

दुख्ख होता हैं जब देखता हुँ राजपूतानियों को बिना चुन्नी घुंघट के -

खुन खौल उठता हैं मेरा - जब देखता हु राजपूतों के बिना मुछ्छो कें ।

आज कि दुनिया मे रंग ग्या मेरा राजपूताना - बस भाईयो छोड दो तुम अब अपने को राजपूत क्षत्रिय कहना ।
कितनी महान परंपरा थी हमारी दुर दुर तक चर्चे थे - राज करना धर्म था और राजपुताना झंडे थे ।
अब यो तो रिती रिवाज निभाकर अपने को राजपूत कहो - नहीं तो कहना बंद करों ।

एक बाईसा से कहा मैने कि दुसरो के सामने घुंघट नही कम से कम चुन्नि तो रखलों - वो बोली आप को क्या हैं मै जो मरजी करू मेरे पती को कोइ एतराज नहीं , तो आप को क्या हक हैं --

मै बोला जिस दिन राजपूतों मे जन्म लिआ था उसी दिन ये हक मुझको मिल ग्या था ।
अरे धिक्कार है एसे मर्दो पर जो अपनी औरतो से घुंघट नही कढा सकतें ।

धिक्कार है उस पिता को जा अपनी लडके लडकि को सदाचार व क्षत्रिय धर्म का ज्ञान ना दे सकें ।
धिक्कार है उस भाई पर जो अपनी बहन कि रक्षा नही कर सकता ।

और आज ये सब हो रहा हैं -- कारण है आज कि दुनिया जो अंग्रेजी किताबो के गुलाम हैं -- रामायण ,
महाभारत , गिता , पुराण , वेद सभ भूल गए और इसी वजह
से राजपूत आज भी गुलाम बनकर रह गएं ।

समय अब भी हाथो मे हैं मत जाने दो सम्मान -- बस याद करो रजपूती शान और पुर्खो कि आन - बान. शान

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