अब 2018-19 में चुनाव ही चुनाव है, और राजस्थान की जनता ही नहीं, संपूर्ण भारतवर्ष की जनता अब फिर से बदलाव के मूड में है....
हाँ वसुंधरा राजे की जगह उस समय चेहरा बदल दिया होता, तो आज राजस्थान में क्या पता, भाजपा फिर से आशान्वित स्थिति में आ सकती थी, पर अब वो समय भी मोदी और अमित शाह के हाथों से निकल चुका है ....
2013-2018 के वसुंधरा राजे मनमाने तानाशाही शासन को आजादी बाद के भारत के सबसे तानाशाही कुशासन के नाम से कहा जाए तो भी कोई अतिशयोक्ति वाली बात नहीं, इस 2013-18 के चक्कर में और एट्रोसिटी संशोधन एक्ट नामक काले कानून की 18-ए धारा के चक्कर में मोदी जी का 2019 और खतरे में पड़ गया, अंग्रेजों ने भी बिना जाँच गिरफ्तारी कर लेने और सीधा जैल में डालने का कानून नहीं बनाया, जिसमे निर्दोष नागरिकों को एक एफआईआर दर्ज होते ही शिकायतकर्ता को आठ लाख अनुग्रह राशि का इनाम दे, जिसकी शिकायत हुई उसको उठाकर, कालकोठरी यानी जैल में डाल दिया जाए ....... बिना किसी जांच, बिना जाँच जेल भेजने वाले कानून ने, भारत के उस केन्द्रीय शासन की, उस मोदी युग की समाप्ति का अंत लिख दिया जिसके लिए भगत लोग कहते थे कि अब तो 2050 तक भारत से मोदी शासन को कोई नहीं हटा सकता है, और कांग्रेस और विपक्षी दल तो सब भारत में नजर ही नहीं आएंगे, पर मोदी जी और वसुंधरा राजे की मनमानी तानाशाही ने सबकुछ पांच साल में खुद ही बदल दिया, खुद ने ही इस पारंपरिक राष्ट्र वादी वाली भाजपा का खात्मा कर दिया, कांग्रेस मुक्त भारत करते करते, इस भाजपा से मूल भाजपाइयों को किनारे कर भाजपा का ही कांग्रेसीकरण कर दिया।
#अजमेर #अलवर #मांडलगढ़ की सीटें छीन राजस्थान की जनता ने छ महीने पहले ही बता दिया कि राजस्थान की जनता अब बदलाव के पूरे मूड में है,
जिसे वसुंधरा राजे और उसकी मंडली के सिपहसालार क्या अमित शाह और मोदी भी ना रोक पाएंगे।
'कमल का फूल हमारी भूल' राजस्थान के हर जाति, हर वर्ग के बीच गूंज रहा यह नारा, गत उप चुनावों जैसे ही आज भी सार्थक है, राजस्थान के राजपूत हो चाहे, ब्राह्मण वैश्य जैसे सामान्य सवर्ण जातीय वर्ग जो भाजपा का पारंपरिक रूप से मज़बूत, और पार्टी का कोर वोटबैंक रहे राजपूत ब्राह्मण वैश्य सहित इनके साथ रहने वाले मूल ओबीसी की वह सब छोटी मोटी और कमजोर मजबूत हर जातियां राजस्थान के वसुंधरा राजे की मनमानी तानाशाही और कुशासन से पीड़ित है,
जाट, गुज्जर, मीणा जैसी मजबूत और अपने क्षेत्रों में हवा की फिजां देख राजनीतिक रूप से दल बदलती रही यह सभी जातियां भी इंतजार में है कि कब पांच साल बीते और हम इस भाजपा सरकार का पाप काटे, मुस्लिम अल्पसंख्यक भी इंतजार में थे, कि कोई लहर फहर फिर से नहीं चल पड़े जो पांच साल का वापस इंतजार भारी पड़ जाए, जिसे केन्द्र में पूर्ण बहुमत से स्थापित करना भाजपा मुखिया नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भी कंट्रोल नहीं कर पाए, उलटा 2019 में कोई उन्हें नुकसान नहीं हो जाए, जो खुद वसुंधरा राजे सरकार के प्रति खुले जनविरोध वाली जानकारी बाद भी मौन हो बैठ गए।
उपरोक्त सभी जातीय समीकरणो में से ऐसा कोई गणित समीकरण अब काम का नहीं जिससे वसुंधरा राजे और केन्द्रीय भाजपा नेतृत्व राहत महसूस कर सके, खुद केन्द्र के प्रति भी यह सब वर्ग नाराज है।
महिला वर्ग हो चाहे युवा वर्ग, मजदूर वर्ग, व्यापारी व्यवसायी चाहे बड़े उद्योगपति यह सब बदलाव के इंतज़ार में है, राजस्थान में तो राज्य कर्मचारी वर्ग हो चाहे वृद्ध पेंशनभोगी कोई भी तो संतुष्ट नहीं है, जो सुराज संकल्प का लोकलुभावने नारे देकर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर तानाशाह शासक रूप में मुख्यमंत्री पद पर बैठी वसुंधरा राजे एवं उसके मंत्री संत्री किसी से संतुष्ट है, जनता पांच साल पैली भी बदलाव चाहती और आज भी बदलाव चाहती है, 'कमल का फूल हमारी भूल' का नारा भूलने वाली बात अब राजस्थान में अप्रासंगिक सी हो गई जिसका अब ना तो तोड़ अमित शाह के पास है और ना ही चुनाव से चंद दिन पहले चलने वाला तुरूप का पत्ता भी अब काम का नहीं जिसे नरेन्द्र मोदी चुनाव के चार पांच दिन पहले चल पासा पलट सके, इस बार वसुंधरा राजे को भी आभास हो गया कि इस बार विदाई पक्की है।
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